कान्हा इक उज्ज्वल प्रकाश सा
घन श्याम गगन में छाए जब
घनश्याम हृदय में मुस्काए,
वन प्रांतर में धेनु झुंड लख
बरबस याद वही आ जाए !
पौ फटते ही मंदिर-मंदिर
जिसे जगाने गीत गूँजते,
माखन मिश्री थाल सजा नित
दीप जला आह्वान करते !
पावन गीता श्लोक नित्य ही
श्रद्धामय स्वरों से बाँचते,
कर्मयोग का ज्ञान प्राप्तकर
पूर्ण भक्ति से पालन करते !
गोधूलि में बाजे बाँसुरी
कदंब वृक्ष, यमुना कूल पर,
अश्रुसिक्त नयनों से तकता
मन राधा सा व्याकुल होकर !
बालक, युवा, प्रौढ़ हर इक को
आराध्य रूप कृष्ण मिला है,
युगों-युगों से भारत का दिल
उन विमल चरणों पे झुका है !
कान्हा इक उज्ज्वल प्रकाश सा
राह दिखाता मानवता को,
चुरा लिया नवनीत हृदय का
ओढ़ लिया उर सुंदरता को !
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जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (9 -8-22} को "कान्हा इक उज्ज्वल प्रकाश सा"( चर्चा अंक 4516) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी !
हटाएंॐ वासुदेवायः नमः 🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संगीता जी !
हटाएंजय श्री कृष्ण 🙏🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार रंजू जी !
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