खुद की ही तलाश में हर दिल
'मैं' जितना 'तुझमें' रहता है
उतने से ही मिल पाता है,
खुद की ही तलाश में हर दिल
संग दूजे जुड़ा करता है !
जितना हमने बाँटा जग में
उतने पर ही होता हक़ है,
बिन बिखरे बदली कब बनती
इसमें नहीं मेघ को शक है !
अंशी अंश मिलें इस ख़ातिर
रूप हज़ारों धर लेते हैं,
खुद को मंदिरों में सजाया
खुद ही सजदे कर लेते हैं !
कोई नहीं सिवाय हमारे
जिससे तिल भर का नाता है,
भेद कभी खुल जाए जिस पर
कण-कण जगती का भाता है !
सहज हुआ वह बंजारा फिर
बस्ती-बस्ती गीत सुनाता ,
स्वयं से मिलने की चाह में
सारे जग में घूमा-फिरता !
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