शनिवार, जनवरी 21

वही मार्ग में संबल बनती


वही मार्ग में संबल बनती


मुख मोड़ा जब-जब प्रकाश से 

हर दुःख इक छाया सा मिलता,

परछाई इक सँग हो लेती 

तज खुद को जब जग को देखा !


बाधा जो सम्मुख आती है 

उसकी भी छाया बनती है,

कभी विषाद, विकार कभी बन  

माया बन जो गहराती है !


ज्योति का इक स्रोत है भीतर 

हम उससे मुख मोड़े रहते, 

पीठ किये इस झिलमिल करते

जग में विचरण करते रहते !


छायाएँ जब मिल आपस में 

नित्य नवीन  रूप धरती हैं, 

कुछ अभिनव कुछ भीत बढ़ातीं 

सदा साथ मन बन रहती हैं !


थम जाए यदि पल भर कोई 

मुड़ कर देखे स्वयं  स्रोत को, 

मन खो जाता तत्क्षण  जैसे 

चकित हुआ सा देखे खुद को !


सदा एक रस सदा साथ है 

ज्योति विमल  जो दिपदिप करती, 

जाने या ना जाने कोई 

वही मार्ग में संबल बनती !


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