कुछ छुपाने को न कुछ बताने को
खुली किताब सा जब बन जाता है
साथ कुदरत का उसे मिल जाता है
कुछ छुपाने को न कुछ बताने को
राहे इश्क़ पर दिल निकल जाता है
दिल के घावों को हवा लगने दो
धूप में ज़िंदगी की उन्हें तपने दो
ढाँक रखने से न हल होंगे कभी
खुल के जियो औरों को जीने दो
हवा बहती है फूल खिलते हैं
कुछ ऐसे ही यहाँ लोग मिलते हैं
दिल भरा हो प्रेम से लबालब
ठाँव अपनों के कहाँ हिलते हैं
खुद को देखोगे तो सराहोगे
दूर दिल से नहीं जा पाओगे
जहाँ बसता है कोई जादूगर
सारी दुनिया को वहीं पाओगे
अपनी नज़रों में खुद को खुद देखो
यह हक़ीक़त है आज या कल देखो
खुद को चाहता नहीं जब तक कोई
इश्क के घर से उसे दूर ही देखो
खिला फूल सुबह शाम झर जाता है
चंद श्वासों का ज़िंदगी से नाता है
दो घड़ी साथ मिले जिस किसी का यहाँ
शुक्रिया हर बात पर निकल आता है
दिल के ज़ख्म जितना जल्दी सीख जाएँ अच्छा है ... हवा लगे तो सोख जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी अभिव्यक्ति ...
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
हटाएंखुद को देखोगे तो सराहोगे
जवाब देंहटाएंदूर दिल से नहीं जा पाओगे
जहाँ बसता है कोई जादूगर
सारी दुनिया को वहीं पाओगे
.. बहुत जी प्रेरक रचना। सादर नमन और वंदन दीदी।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
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