कोई कोई ही पहुँचे घर
हर सुख की छाया दुःख ही है
जो संग चली आती उसके,
हर चाह अचाह छुपाए है
देखेगा, होश जगे जिसके !
चाहों से यह जग चलता है
पर टिका हुआ अचाह बल पर,
मंज़िल दोनों के पार खड़ी
कोई कोई ही पहुँचे घर !
जग दो की फ़िक्र सदा करता
आज हँसे कल रोए वाला,
आख़िर कब तक माया बाँधे
दे आवाज़ बाँसुरी वाला !
योग अधूरा मन का जब तक
मानव खुद को छलता रहता,
प्रेम तंतुओं का जो पुतला
बिरहन सा दुःख सहता रहता !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 जनवरी 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार रवीन्द्र जी !
हटाएंयोग अधूरा मन का जब तक
जवाब देंहटाएंमानव खुद को छलता रहता,
प्रेम तंतुओं का जो पुतला
बिरहन सा दुःख सहता रहता !
..बहुत सही
स्वागत व आभार कविता जी!
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