कविता
कोई एक भाव
एक शब्द, एक विचार
उतर आता है न जाने कहाँ से
और पीछे एक धारा बही आती है
अक्सर कविता ऐसे ही कही जाती है
अनायास, अप्रयास
कभी थम जाती है कलम तो जानना कि
प्रवाह रुक गया है
कि मार्ग में अवरोध है
कोई पाहन इच्छाओं का
या कोई दीवार द्वेष की
नकार की बाड़ तो नहीं लग गयी
जिन्हें हटाते ही फिर बहेगी
कल-कल छल-छल
काव्य की अजस्र धारा
निरंतर भिगोती हुई अंतर व बाह्य जगत
आलोकित होगा
मन प्राण ही नहीं
देह का एक-एक कण !
बहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार भारती जी!
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