पुनः अयोध्या लौटते राम
सारे भूमण्डल में फैली
रामगाथा में बसते राम,
जन्मे चैत्र शुक्ल नवमी को
मर्यादा हर सिखाते राम !
पैरों में पैजनियां पहने
घुटनों-घुटनों घूमते राम,
माँ हाथों में लिए कटोरी
आगे आगे दौड़ते राम !
गुरुकुल में आंगन बुहारते
गुरू चरणों में झुकते राम,
भाइयों व मित्रों को पहले
निज हाथों से खिलाते राम !
ताड़का सुबाहु विनाश किया
यज्ञ की रक्षा करते राम,
शिव का धनुष सहज ही तोडा
जनक सुता को वर रहे राम !
जन-जन के दुःख दर्द को सुन
अयोध्या को संवारें राम,
राजा उन्हें बनाना चाहें
पिता नयनों के तारे राम !
माँ की इच्छा पूरी करने
जंगल-जंगल घूमते राम,
सीता की हर ख़ुशी चाहते
हिरन के पीछे जाते राम !
जटायु को गोदी में लेकर
आँसूं बहाते व्याकुल राम,
खग, मृग, वृक्षों, बेल लता से
प्रिया का पता पूछते राम !
शबरी के जूठे बेरों को
अतीव स्वाद ले खाते राम,
महावीर को गले लगाते
सुग्रीव मित्र बनाते राम !
छुप कर तीर बालि को मारा
दुष्टदलन सदा करते राम,
महावीर को दी अंगूठी
स्मरण सिया नित्य करते राम !
सागर पर नव सेतु बनाया
शिव की अर्चना करते राम,
असुरों का विनाश कर लौटे
पुनः अयोध्या लौटते राम !
सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
हटाएंसुन्दर रचना|
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार जोशी जी !
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