सोमवार, जनवरी 15

पुनः अयोध्या लौटते राम

पुनः अयोध्या लौटते  राम

सारे भूमण्डल में फैली 

रामगाथा में बसते राम, 

जन्मे चैत्र शुक्ल नवमी को

मर्यादा हर सिखाते राम !


पैरों में पैजनियां पहने 

घुटनों-घुटनों घूमते  राम, 

माँ हाथों में लिए कटोरी

आगे आगे दौड़ते  राम !


गुरुकुल में आंगन बुहारते 

गुरू चरणों में झुकते राम, 

भाइयों व मित्रों को पहले 

निज हाथों से खिलाते राम !


ताड़का सुबाहु विनाश किया 

 यज्ञ की रक्षा करते राम, 

शिव का धनुष सहज ही तोडा 

जनक सुता को वर रहे  राम !


जन-जन के दुःख दर्द को सुन 

अयोध्या को संवारें राम, 

राजा उन्हें बनाना चाहें  

पिता नयनों के तारे राम !


माँ की इच्छा  पूरी करने  

जंगल-जंगल घूमते राम, 

सीता की हर ख़ुशी चाहते 

हिरन के पीछे जाते राम !


जटायु को गोदी में लेकर 

आँसूं बहाते व्याकुल राम, 

खग, मृग, वृक्षों, बेल लता से 

प्रिया का पता पूछते राम !


शबरी के जूठे बेरों को 

अतीव स्वाद ले खाते राम, 

महावीर को गले लगाते 

सुग्रीव मित्र बनाते राम !


छुप कर तीर बालि को मारा 

दुष्टदलन सदा  करते राम, 

महावीर  को दी अंगूठी 

स्मरण  सिया  नित्य  करते राम !


सागर पर नव  सेतु बनाया 

शिव की अर्चना  करते राम, 

असुरों का विनाश कर लौटे 

पुनः अयोध्या लौटते  राम !




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