बुधवार, जनवरी 10

एक लपट मृदु ताप भरे जो

एक लपट मृदु ताप भरे जो 



बैंगनी फूलों की डाल से

फूल झर रहे झर-झर ऐसे, 

लहरा कर इक पवन झकोरा 

सहलाये ज्यों निज आँचल से !


याद घेर लेती है जिसकी 

बनकर अनंत शुभ नील गगन, 

कभी गूंजने लगता उर में 

अनहद गुंजन आलाप सघन ! 


एक लपट मृदु ताप भरे जो 

हर लेती हृदय का संताप, 

सुधियाँ किसी अरूप तत्व की 

बनी रहतीं फिर भी अनजान ! 


सागर-लहर, गगन-मेघा सा 

नाता उस असीम से उर का, 

कौन समाया किस पल क़िसमें  

ज्योति अगन या गंध सुमन में !



4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 11 जनवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !

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