कुसुमों में सुगंध के जैसा
राग नया हो ताल नयी हो
कदमों में झंकार नयी हो,
रुनझुन रिमझिम भी पायल की
उर में करुण पुकार नयी हो !
अभी जहाँ विश्राम मिला है
बसे हैं उससे आगे राम,
क्षितिजों तक उड़ान भर ले जो
हृदय को पंख लगें अभिराम !
अतल मौन से जो उपजा हो
सृजित वही हो मधुर संवाद,
उथले-उथले घाट नहीं अब
गहराई में पहुंचे याद !
नया ढंग अंदाज नया हो
खुल जाएँ जो बंद हैं द्वार ,
नये वर्ष में गीत नया हो
बरसे बरबस सरस उपहार !
अंजुरी भर-भर बहुत पी लिया
अमृत घट वैसा का वैसा,
अब अंतर में भरना होगा
कुसुमों में सुगंध के जैसा !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार रवींद्र जी!
जवाब देंहटाएंपावस रचना ... नव वरश मुबारक ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुंदर प्रस्तुति, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंनया उत्साह और ताजगी भरता नववर्ष का नया गीत सरस और सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार गिरिजा जी !
हटाएंश्रद्धासुमन में गीतांजलि का काव्यानुवाद देखा कुछ ही गीत पढ़कर विभोर हुए बिना न रह सकी . ऐसी महान कृति का इतना मधुर अनुवाद ! वाह
जवाब देंहटाएंआपको काव्यानुवाद भाया, जानकर बहुत अच्छा लगा, आभार !
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