शुक्रवार, अक्टूबर 3

तू ही भरे रंग माया के

तू ही भरे रंग माया के


भाव सभी अर्पित करते हैं 

प्रेम और करुणा जो तुझसे, 

पल-पल इस जग में झरते हैं 

कष्ट हमारा हर हरते हैं !


मधुर तृप्ति का भाव जगा जो 

अतृप्ति का भी घाव लगा जो, 

चैन और बेचैनी उर की 

तेरे चरणों पर रखते हैं !


शांति औ' आनंद की मूरत 

देवी ! तू अज्ञान को हरे, 

तू ही भरे रंग माया के

हर वर माथे पर धरते हैं !


जगे परम स्वीकार ह्रदय में 

विश्रांति मिल जाये चरण में, 

मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार में 

ध्यान सदा तेरा करते हैं ! 


देवी ! तेरे रूप हज़ारों 

कथा अनेकों, नाम हज़ारों, 

किस-किस को जाने यह लघु मन 

तुझमें ही जीते मरते हैं !



13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार दिग्विजय जी!

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  2. आपकी ये कविता पढ़कर मुझे सच में एक अलग ही शांति और मधुर अनुभव हुआ। आपने जिस तरह देवी के प्रेम, करुणा और आशीर्वाद को शब्दों में पिरोया है, वह बहुत ही सुंदर और सहज लगता है। मुझे सबसे ज़्यादा पसंद आया जहाँ आप मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार को चरणों में रखने की बात करते हो, वह सच में दिल छू लेता है।

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