कोई मतवाला मंजिल तक
फूल उगाये जाने किसने
गंध चुरायी है सबने,
स्वेद बहाया जाने किसने
स्वप्न सजाये हैं सबने !
कोई मतवाला मंजिल तक
जाने का दमखम रखता,
पीछे चले हजारों उसके
घावों पर मरहम रखता !
राह बनायी जाने किसने
कदम अनेकों के पड़ते,
देख उसे ही तृप्त हो रहे
पहुँचेगे, किस्से गढ़ते !
एकाकी ही लक्ष्य बेधता
भीड़ें सभी बिखर जातीं,
जीवन को सतह पर छूकर
तृप्त हुईं निज घर जातीं !
स्वर्णिम कलश सा कोई चमके
आभा मंडित सब होते,
उसको हमने भी देखा है
दर्शन पाये यह कहते !
एकाकी ही लक्ष्य बेधता
जवाब देंहटाएंभीड़ें सभी बिखर जातीं,
जीवन को सतह पर छूकर
तृप्त हुईं निज घर जातीं !
.... सत्य को बहुत ही सुन्दरता से उकेरा है…………सुन्दर रचना।
बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : बंदिशें और भी हैं
सुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंकल 08/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
तत्वपूर्ण चिन्तन सुन्दर कथन !
जवाब देंहटाएंसंजय जी, राजीव जी, यशवंत जी, माहेश्वरी जी व प्रतिभा जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंकिसी न किसी को तो आगे आना ही पड़ता है,और फिर कारवां बन जाता है ,भावपूर्ण अभिव्यक्ति
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