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सोमवार, अप्रैल 26

रहमतें बरसती हैं

 

रहमतें बरसती हैं

करें क़ुबूल सारे गुनाहों को हम अगर

रहमतें बरसती हैं, धुल ही जायेंगे 


हरेक शै अपनी कीमत यहाँ माँगे 

 भला कब तक चुकाने से बच पाएंगे 


 वही खुदा बसता सामने वाले में भी

 खुला यही राज कभी तो पछतायेंगे 


मांग लेंगे करम सभी नादानियों पर 

और अँधेरे में मुँह नहीं छुपायेंगे 


उजाले बिखरे हैं उसकी राहों में 

 यह अवसर भला क्यों चूक जायेंगे 


अपनी ख्वाहिशें परवान चढ़ाते आये 

अब उसी मालिक के तराने गाएंगे 


भूख से ज्यादा मिला प्यास फिर भी न बुझी 

 आखिर कब तक यह मृगतृषा बुझाएंगे 

 

मंगलवार, मई 5

हर ख्वाहिश पे दम निकले


हर ख्वाहिश पे दम निकले 


सूची ख्वाहिशों की चुकने को नहीं आती
तुझसे मिलने की सूरत नजर नहीं आती 

या खुदा ! तू छुपा नहीं है लाख पर्दों में 
नजरें अपनी ही तेरी तरफ नहीं जातीं 

सच है कि तुझसे मिलने की तड़प थी दिल में 
पीछे मंशा क्या थी यह कही नहीं जाती 

तुझसे है जमाना यह जान भी तुझसे है 
जानकर भी खलिश दिल की कहीं नहीं जाती 

तेरी माया के जाल बड़े ही गहरे हैं 
उससे बचने की तदबीर भी नहीं आती 

जमाना 'वाह'  कह उठे इसी पे मरते हैं 
तेरी खामोश जुबां समझ में नहीं आती 

कभी दौलत कभी शोहरत को तवज्जो दी 
बर्बादी खुद की खुद को नजर नहीं आती


मंगलवार, फ़रवरी 18

दिल में उसके हम रहते हैं

दिल में उसके हम रहते हैं



वह रहता है अपने दिल में
सुना था जाने कितनी बार,
झाँका जब भी भीतर अपने
पाया केवल यह संसार !

चाह भरी थीं सुख की अनगिन
नाम छोड़ कर जाने की धुन,
खुद के बल पर मिला न जो भी
रब से उसको पाने की धुन !

लेकिन हर ख्वाहिश के पीछे
मांग ख़ुशी की छिपी हुई थी,
कुछ कर के दिखलाने में भी
भीतर एक पुलक जगती थी !

हुई जो पूरी चाह कभी तो
नयी लालसा को जन्मा कर,
एक छलावा, सम्मोहन सा
घिरा रहा अंतर उपवन पर !

तभी किसी ने कहा कान में
शरण में आ जाओ तुम मेरी,
नयन मूंद कर अब जब झाँका
तृप्ति की थी राह सुनहरी !

मन में कौंध गया तब राज
दिल में उसके हम रहते हैं,
जहाँ अभाव कभी न कोई
सुमिरन के दरिया बहते हैं !