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सोमवार, नवंबर 4

ख्वाब और हकीकत


ख्वाब और हकीकत 

कौन सपने दिखाए जाता है
नींद गहरी सुलाए जाता है

होश आने को था घड़ी भर जब
सुखद करवट दिलाए जाता है

मिली ठोकर ही जिस जमाने से
नाज उसके उठाए जाता है

गिन के सांसे मिलीं, सुना भी है
रोज हीरे गंवाए जाता है

पसरा है दूर तलक सन्नाटा
हाल फिर भी बताए जाता है

कोई दूजा नहीं सिवा तेरे
पीर किसको सुनाए जाता है

टूट कर बिखरे, चुभी किरचें भी
ख्वाब यूँही सजाए जाता है

बुधवार, जून 28

हाथ थाम भी ले जाता है


हाथ थाम भी ले जाता है


जागें हम, कोई यह चाहे
भांति-भांति के करे उपचार,
कभी पिलाये दुःख का काढ़ा
सुख झूला दे कभी पुचकार !

राहें यदि दुर्गम लगती हों
हाथ थाम भी ले जाता है,
किंतु यदि न सजग रहा कोई
पथ का पत्थर बन जाता है !

ठोकर खाकर भी हम जागें
आखिर कब तक यूँ भटकेंगे,
चार दिनों का रौनक मेला
जरा मिलेगी, नयन मुदेंगे !

जाने कितने भय भीतर हैं
जड़ें काटना वह सिखलाये,
यदि न जागरण अविचलित रखा
झट आईना वह दिखलाये !

मंगलवार, मार्च 28

मिट जाने को जो तत्पर है


मिट जाने को जो तत्पर है

मरना जिसने सीख लिया है
उसको ही है हक जीने का,
साँझ ढले जो मुरझाये, दे
प्रातः उसे अवसर खिलने का !

मिट जाने को जो तत्पर है
वही बना रहता इस जग में,
ठोकर से जो न घबराए
बना रहेगा जीवन मग में !

सच की पूजा करने वाले
नहीं झूठ से बच सकते हैं,
जो सुन्दरता को ही चाहें
वही कुरूपता लख सकते हैं !

बोल-अबोल, मित्र-शत्रु भी
है पहलू इक ही सिक्के का,
सदा डोलता रहता मानव
 बना हुआ एक दोलक सा !