बुधवार, जून 28

हाथ थाम भी ले जाता है


हाथ थाम भी ले जाता है


जागें हम, कोई यह चाहे
भांति-भांति के करे उपचार,
कभी पिलाये दुःख का काढ़ा
सुख झूला दे कभी पुचकार !

राहें यदि दुर्गम लगती हों
हाथ थाम भी ले जाता है,
किंतु यदि न सजग रहा कोई
पथ का पत्थर बन जाता है !

ठोकर खाकर भी हम जागें
आखिर कब तक यूँ भटकेंगे,
चार दिनों का रौनक मेला
जरा मिलेगी, नयन मुदेंगे !

जाने कितने भय भीतर हैं
जड़ें काटना वह सिखलाये,
यदि न जागरण अविचलित रखा
झट आईना वह दिखलाये !

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