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बुधवार, जून 28

हर बार

हर बार 


हर संघर्ष जन्म देता है सृजन को 

अत: भागना नहीं है उससे 

चुनौती को अवसर में बदल लेना है 

कई बार बहा ले जाती है बाढ़ 

व्यर्थ  अपने साथ 

और छोड़ जाती है 

कोमल उपजाऊ माटी की परत खेतों में 

तूफ़ान उड़ा ले जाते हैं धूल के ग़ुबार 

और पुन: सृजित होता है नव निर्माण 

जीवन जैसा मिले 

वैसा ही गले लगाना है 

उस परमात्मा को 

हर बहाने से दिल में बसाना है 

जो पावन है वही शेष रहेगा 

मायावी हर बार चला ही जाएगा 

जैसे मृत्यु ले जाएगी देह 

पर आत्मा तब भी निहारती रहेगी ! 


बुधवार, जून 8

छुए जाता है पवन ज्यों

छुए जाता है पवन ज्यों 


ज़िंदगी पल-पल गुजरती 

रूप निज हर क्षण बदलती, 

 जैसे मिले, स्वीकार लें 

देकर प्रथम, अधिकार लें ! 


व्यर्थ ही हम जूझते हैं 

बह चलें सँग धार के यदि, 

ऊष्मा भाव की खिल के 

मुक्त होगी निज व उनकी !


चार दिन का साथ है यह 

क्यों यहाँ ख़ेमे लगाएँ, 

छुए जाता है पवन ज्यों 

इस जहाँ से गुजर जाएँ !


सोमवार, अप्रैल 11

सत्य

सत्य 


सत्य समान नहीं कोई पावन
सत्य आश्रय मन अपावन,
नदियाँ ज्यों दौड़ें सागर में
सत्य साध्य है सत्य ही साधन !

जो सत्य है वह सहज है
जो सहज है वह पूर्ण है
जो पूर्ण है वह तृप्त है
मन खो जाता है उस तृप्ति का अहसास पाकर
वहाँ केवल होना है
कोई चाह नहीं,
इसलिए उसे पूर्ण करने की त्वरा भी नहीं
कृत्य नहीं..वहाँ मौन है
पर उस मौन से मधु रिसता है
सत्य का वह द्वार भीतर जाकर ही मिलता है
ज्यों शाखों से फूल झरें सहज ही 
वहाँ से कृत्य भी उतरता है !  

शनिवार, फ़रवरी 8

बहने दो

बहने दो


बहने दो पावन रसधार, मत रोको !
झरने दो सजल अश्रुधार, मत टोको

माना मन परिचित है बंधन से
डरता है अनहद की गुंजन से

खिलने दो अन्तस् की डार, मत रोको !
भरने दो फागुनी बयार, मत टोको !

माना मन स्वप्नों में खोया है
अनजाने रस्तों पर रोया है

छाने दो सहज प्यार, मत रोको !
खुलने दो मनस द्वार, मत टोको !

सुनने दो कर्णों को प्रकृति की भाषा
गिर जाय जन्मों से बाँध रही आशा

कुछ न शेष रहने दो, मत रोको !
जीवन को कहने दो, मत टोको !




सोमवार, फ़रवरी 11

सभी जोड़ों को समर्पित जिनके विवाह की सालगिरह इस हफ्ते है


कल बड़े भैया-भाभी के विवाह की वर्षगाँठ है, यह कविता उनके साथ उन सभी के लिए है जिनके विवाह की सालगिरह इस हफ्ते है. 

विवाह की वर्षगाँठ पर 

स्वर्ग में तय होते हैं रिश्ते
सुना है ऐसा, सब कहते हैं,
जन्नत सा घर उनका जो
इकदूजे के दिल में रहते हैं !

जीवन कितना सूना होता
तुम बिन सच ही हम कहते, 
खुशियों की इक गाथा उनमें
आंसू जो बरबस बहते हैं !

हाथ थाम कर लीं थीं कसमें
उस दिन जिस पावन बेला में,
सदा निभाया सहज ही तुमने
पेपर पर लिख कर देते हैं !

कदम-कदम पर दिया हौसला
प्रेम का झरना बहता रहता,
ऊपर कभी कुहासा भी हो
अंतर में उपवन खिलते हैं !

नहीं रहे अब ‘दो’ हम दोनों
एक ही सुर इक ही भाषा है,
एक दूजे से पहचान बनी 
संग-संग ही जाने जाते हैं !

आज यहाँ आकर पहुंचे हैं
जीवन का रस पीते-पीते
कल भी साथ निभाएंगे हम
पवन, अगन, सूरज कहते हैं !