हर बार
हर संघर्ष जन्म देता है सृजन को
अत: भागना नहीं है उससे
चुनौती को अवसर में बदल लेना है
कई बार बहा ले जाती है बाढ़
व्यर्थ अपने साथ
और छोड़ जाती है
कोमल उपजाऊ माटी की परत खेतों में
तूफ़ान उड़ा ले जाते हैं धूल के ग़ुबार
और पुन: सृजित होता है नव निर्माण
जीवन जैसा मिले
वैसा ही गले लगाना है
उस परमात्मा को
हर बहाने से दिल में बसाना है
जो पावन है वही शेष रहेगा
मायावी हर बार चला ही जाएगा
जैसे मृत्यु ले जाएगी देह
पर आत्मा तब भी निहारती रहेगी !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 जून 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंवाह! अनीता जी ,बहुत खूब...।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शुभा जी!
हटाएंतूफ़ान उड़ा ले जाते हैं धूल के ग़ुबार
जवाब देंहटाएंमृत्यु ले जाती है देह....पुनः नव सृजन आत्मा का , प्रकृति का...
हम स्वीकार कहाँ करते हैं इस सत्य को।
वाह!!!
स्वागत व आभार सुधा जी !
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