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बुधवार, मई 1

मई दिवस पर

मई दिवस पर 


दुनिया बंट गई जब से 

मज़दूर और मालिक में 

बंदे और ख़ालिक में 

शोषित और शोषक 

तब से ही आये हैं अस्तित्त्व में 

पर अब समय बदल रहा है 

श्रमिक भी सम्मानित किए जाते हैं 

सफ़ाई कर्मचारियों के पैर 

पखारे जाते हैं 

आगे की पंक्तियों में स्थान मिलता है 

श्रमिकों को सभाओं में 

श्रम की महत्ता को हम स्वीकारने लगे हैं 

मज़दूर दिवस पर लग रहे हैं नये नारे 

दुनिया के सब लोगों एक हो जाओ

एक तरह से यहाँ सभी श्रमिक हैं 

श्रम के बिना यहाँ कुछ भी नहीं मिलता है 

हाँ, श्रम शारीरिक, मानसिक

या बौद्धिक हो सकता है 

घंटों कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठे 

युवा भी श्रमिकों की श्रेणी में आ सकते हैं
रेढ़ी-पटरी वाले और उनको 

ऋण देने वाले बैंक के कर्मचारी 

 दोनों ही समाज का काम करते हैं 

श्रम करते हैं खिलाड़ी 

देश का नाम होता है 

चींटी भी कम श्रम नहीं करती 

घर बनाने और जमा करने में भोजन 

बोझ केवल आदमी ही नहीं उठाता 

पशु भी भागीदार हैं युगों से 

नन्हा शिशु भी पालने में पड़ा -पड़ा 

हाथ पैर मारता है 

श्रम की महत्ता 

प्रकृति का हर कण सिखलाता है ! 


गुरुवार, सितंबर 17

हे विश्वकर्मा !

 हे विश्वकर्मा !

अमरावती, लंका,  द्वारिका, इंद्रप्रस्थ 

व  सुदामापुरी के निर्माता !

रचे पुष्पक विमान व देवों के भवन 

कर्ण -कुण्डल, सुदर्शन चक्र, 

शिव त्रिशूल और यम-कालदण्ड !

दिया मानव को वास्तुकला का अनुपम उपहार 

रचाया सबके हित एक सुंदर संसार 

तूने स्थापित की शिल्पियों की एक परंपरा 

अपरिमित है तेरी शक्ति 

आकाश को छूती अट्टालिकाएँ और 

विशाल नगरों का हुआ निर्माण 

उस ज्ञान से, जो विरासत में दिया 

ब्रह्मा दिन-रात गढ़ रहे हैं देहें 

सूक्ष्म जीवों और और पादपों की 

पशुओं और मानवों की 

जिनको आश्रय देता है 

हर श्रमिक में छिपा विश्वकर्मा 

जो दिनरात अपनी मेहनत से 

सृजित करता है छोटे-बड़े आलय 

जो भी औजारों से काम करते हैं 

वे वशंज हैं विश्वकर्मा के 

उन्हें हम प्रणाम करते हैं ! 


रविवार, मार्च 29

गाँव बुलाता आज उन्हें फिर

गाँव बुलाता आज उन्हें फिर 


सुख की आशा में घर छोड़ा 
मन में सपने, ले आशाएँ, 
आश्रय नहीं मिला संकट में 
जिन शहरों में बसने आये !

गाँव बुलाता आज उन्हें फिर 
टूटा घर वह याद आ रहा,
वहाँ नहीं होगा भय कोई 
माँ, बाबा का स्नेह बुलाता !

कदमों में इतनी हिम्मत है 
मीलों चलने का दम भरते, 
इस जीवट पर अचरज होता  
क्या लोहे का वे दिल रखते !

एक साथ सब निकल पड़े हैं 
नहीं शिकायत करें किसी से,
भारत के ये अति वीर श्रमिक 
बचे रहें बस कोरोना से !

सोमवार, सितंबर 16

विश्वकर्मा पूजा पर ढेरों शुभकामनायें

विश्वकर्मा पूजा पर ढेरों शुभकामनायें 



एक भोर उजास भरी

जिस दिन आएगी भारत में
स्वप्न सृजन का दृग खोलेगा,
कर्मठता का हर अंतर में
एक सघन विश्वास उगेगा !
  
एक ज्योति आह्लाद भरी

जिस पल जन-जन में छाएगी
कृषक सुखद जीवन जीएगा,
नहीं मरेगा श्रमिक भूख से
औजारों में रब दीखेगा !

एक लहर आह्वान भरी

जिस क्षण छाएगी हर ओर
 श्वास-श्वास होगी तब अर्पित,
 गीत रचेगा कण-कण, भूमि
सरसेगी युग-युग से वंचित !