कब आँखें उस ओर मुड़ेगीं
पानी मथता है संसार
बाहर ढूँढ रहा है प्यार,
फूल ढूँढने निकला खुशबू
मानव ढूँढे जग में सार !
राजा भी यहाँ लगे भिखारी
नेता भी पीछे ही चलता,
सबने गाड़े अपने खेमे
बंदर बाँट का खेल है चलता !
सही गलत का भेद खो रहा
लक्ष्मण रेखा मिटी कभी की.
मूल्यों की कोई बात न करता
गहरी नींद न टूटे जग की !
जरा जाग कर देखे कोई
कंकर जोड़े, हीरे त्यागे,
व्यर्थ दौड़ में बही ऊर्जा
पहुँचे कहीं न वर्षों भागे !
सत्य चहुँ ओर बिखरा है
आँखें मूंदे उससे रहता,
भिक्षु मन कभी तृप्त न होता
अहंकार किस बूते करता !
हर क्षण लेकिन भीतर कोई
बैठा ही है पलक बिछाये,
कब आँखें उस ओर मुड़ेगीं
जाने कब वह शुभ दिन आये !
जरा जाग कर देखे कोई
जवाब देंहटाएंकंकर जोड़े, हीरे त्यागे,
व्यर्थ दौड़ में बही ऊर्जा
पहुँचे कहीं न वर्षों भागे !
जीवन की आपाधापी और मूल्यों को दिखाती सुन्दर रचना...
सादर.
हर क्षण लेकिन भीतर कोई
जवाब देंहटाएंबैठा ही है पलक बिछाये,
कब आँखें उस ओर मुड़ेगीं
जाने कब वह शुभ दिन आये !
बढिया प्रसतुति !!
यह रचना अपनी एक अलग विषिष्ट पहचान बनाने में सक्षम है।
जवाब देंहटाएंहर क्षण लेकिन भीतर कोई
जवाब देंहटाएंबैठा ही है पलक बिछाये,
कब आँखें उस ओर मुड़ेगीं
जाने कब वह शुभ दिन आये !
इंतजार है उस पल का जाने कब आये वह शुभ दिन... बहुत अच्छे भाव... शुभकामनाएं...
राजा भी यहाँ लगे भिखारी
जवाब देंहटाएंनेता भी पीछे ही चलता,
सबने गाड़े अपने खेमे
बंदर बाँट का खेल है चलता !
सटीक बात काही है ...
हर क्षण लेकिन भीतर कोई
बैठा ही है पलक बिछाये,
कब आँखें उस ओर मुड़ेगीं
जाने कब वह शुभ दिन आये !
अपने अंदर झांक लें तो गंदे खेल अपने आप खत्म हो जाएंगे ... बहुत सुंदर रचना
सही गलत का भेद खो रहा
जवाब देंहटाएंलक्ष्मण रेखा मिटी कभी की.
मूल्यों की कोई बात न करता
गहरी नींद न टूटे जग की !
बेहद खुबसूरत ।