आँसू बनकर वही झर गया
दुःख की नगरी में जा पहुँचे,
निकले थे सुख की तलाश में,
अंधकार से भरे नयन हैं
खोल दिये जब भी प्रकाश में !
फूल जान जिसे कंठ लगाया,
काँटे बनकर वही बिँध गया,
अधरों पर जो मिलन गीत था
आँसू बनकर वही झर गया !
तलविहीन कूआं था कोई
किया समर्पित हृदय जिस द्वार,
जहाँ उड़ेला भाव प्रीत का
पाषाण की निकली दीवार !
स्वप्न भरे थे जिस अंतर में,
सूना सा वह बना खंडहर
बात बिगड़ती बनते-बनते,
दिल में पीड़ा बहे निरंतर !
दिल को छूती बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कैलाश जी..!
जवाब देंहटाएंये होता है जान इच्छा जागती है ... अन्यथा जीवन तो यही है .. दुःख निरंतर है .. ख़ुशी पल भर है ... यही जीवन है
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