मन सिमटा आंगन में जैसे
फिर घिर आये मेघ गगन पर
फिर गाए अकुलाई कोकिल,
मौसम लौट लौट आते हैं,
जीवन वर्तुल में खोया मन !
वही आस सुख की पलती है
वही कामना दंश चुभोती,
मन सिमटा आंगन में जैसे
दीवारें चुन लीं विचार की !
मन शावक भी यदि निशंक हो,
तोड़ कैद उन्मुक्त हुआ सा,
एक नजर भर उसे ताक ले
द्वार खुलेगा तब अनंत का !
निकट कहीं वंशी धुन बजती
टेर लगाता कोई गाये,
निज कोलाहल में डूबा जो
रुनझुन से वंचित रह जाये !
गज़ब की अभिव्यक्ति, बधाई !!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सतीश जी !
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