राग मधुर भीतर जो बहता
क्या कहना अब
क्या सुनना है
मौन हुए उसको
गुनना है,
होकर भी जो नहीं
हो रहा
उस हित भाव पुष्प
चुनना है !
क्या चाहें किसको
खोजें अब
अंतहीन तलाश हर
निकली,
मिलकर भी जो नहीं
मिला है
कदमों पर उसके
झुकना है !
क्या पाना अब
किसे सहेजें
किसका लोभ ?
लाभ अब चाहें,
छूट रहा पल-पल यह
जीवन
श्वासों का अंबर
बुनना है !
राग मधुर भीतर जो
बहता
जर्रा जर्रा जिसे
समेटे,
हट जाना राहों से
उसकी
अनायास उसको बहना
है !
अंतर में जो दीप
जल रहा
राह दिखाता वही
अंत में,
रोशन कर दे कंटक
सारे
एक-एक कर सब
चुनना है !
बहुत सुन्दर ... मन के द्वार पेदस्तक देती ... भावपूर्ण ... स्वयं को खोजने पे प्रयास रत रचना पर अंत अंतस से मिलन ही है ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार दिगम्बर जी !
हटाएंक्या कहना अब क्या सुनना है...
जवाब देंहटाएंnice lines
स्वागत व आभार रजनीश जी !
हटाएंगज़ब का लिखती हैं आप , बधाई !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सतीश जी !
हटाएं