सोमवार, जून 5

राग मधुर भीतर जो बहता


राग मधुर भीतर जो बहता

क्या कहना अब क्या सुनना है
मौन हुए उसको गुनना है,
होकर भी जो नहीं हो रहा
उस हित भाव पुष्प चुनना है !

क्या चाहें किसको खोजें अब
अंतहीन तलाश हर निकली,
मिलकर भी जो नहीं मिला है
कदमों पर उसके झुकना है !

क्या पाना अब किसे सहेजें
किसका लोभ ? लाभ अब चाहें,
छूट रहा पल-पल यह जीवन
श्वासों का अंबर बुनना है !

राग मधुर भीतर जो बहता
जर्रा जर्रा जिसे समेटे,
हट जाना राहों से उसकी
अनायास उसको बहना है !

अंतर में जो दीप जल रहा
राह दिखाता वही अंत में,
रोशन कर दे कंटक सारे
एक-एक कर सब चुनना है !

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ... मन के द्वार पेदस्तक देती ... भावपूर्ण ... स्वयं को खोजने पे प्रयास रत रचना पर अंत अंतस से मिलन ही है ...

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  2. क्या कहना अब क्या सुनना है...
    nice lines

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  3. गज़ब का लिखती हैं आप , बधाई !

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