जिंदगी
जिस घड़ी आ जाये होश जिंदगी से रूबरू हों
एक पल में ठहर कर फिर झांक लें खुद के नयन में
बह रही जो खिलखिलाती गुनगुनाती धार नदिया
चंद बूंदें ही उड़ेलें उस जहाँ की झलक पालें
क्या यहाँ करना क्या पाना यह सिखावन चल रही है
बस जरा हम जाग देखें और अपने कान धर लें
नहीं चाहे सदा देती नेमतें अपनी लुटाती
चेत कर इतना तो हो कि फ़टे दामन ही सिला लें
पूर्णता की चाह जागे मनस से हर राह मिलती
ला दिया जिसने सवेरा रात जिससे रोज खिलती
उस भली सी इक ललक को धूप, पानी, खाद दे दें
जो कभी बुझती नहीं है वह नशीली आग भर लें
सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं. वाह कितनी गहरी बातें कह दिया आपने सच में बहुत ही खूबसूरत पंक्तियों के साथ सजी हुई बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25-11-2019) को "कंस हो गये कृष्ण आज" (चर्चा अंक 3530) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
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रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंवाह!क्या बात है !!
जवाब देंहटाएंजिस घडी आ जाए होश ,जिंदगी से रूबरू हों ...।