इक राह नई चुननी है
इक राह नई चुननी है
रक्षित दुर्ग बनाना है,
इस अनजाने दुश्मन से
सबको ही बचाना है !
धीरज की बाँह पकड़कर
सहना है हर अनुशासन ,
मन ना कोई विचलित हो
शुभ संदेश सुनाना है !
थोड़े में गुजारा हो
मिल बांट के हम खाएँ,
कोई भी अकेला हो
उसे ढूंढ के लाना है !
मीलों की भले दूरी
दिल से नहीं दूर रहें,
करुणा जगे अंतर में
यही फूल खिलाना है !
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
19/04/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
बहुत बहुत आभार !
हटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
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