गुरुवार, अप्रैल 16

संकल्प से सृष्टि

संकल्प से सृष्टि 


संकल्प से सृष्टि का निर्माण होता है 
इस सूत्र को अक्सर भुला देते हैं हम 
और स्वयं ही कर बैठते हैं 
संकल्प अनिष्ट का !
हमारी प्रार्थनाएं भी हमारे भय से उपजी हैं 
हे ईश्वर ! कहीं ‘कुछ’ हो न जाये !!
और वह ‘कुछ’ हमारे मनों में स्पष्ट होता जाता है 
फिर एक दिन धर लेता है मूर्त रूप  
‘कंटेजियन’ जैसी फ़िल्में 
मनों में आशंका के बीज बोती हैं 
सभी हॉरर कहानियां भय को जगाती हैं 
और एक दिन वह फलीभूत होता है 
अस्तित्त्व हमें वही लौटाता है 
जो हम मांगते हैं 
जीवन सुंदर है, कहीं नहीं है कोई अन्याय 
दूर हो रही हर विषमता…
 ऐसे संकल्प कौन उठाता है ?
बच्चे बिगड़ रहे हैं... कहते-कहते वे बिगड़ ही जाते हैं 
हमने जाने-अनजाने जो भी चाहा है 
वही अपने इर्द-गिर्द पाया है 
ज्ञान, इच्छा, क्रिया का सही संतुलन 
मानव को नहीं आया है  !


5 टिप्‍पणियां:

  1. ज्ञान दूर कुछ क्रिया भिन्न है।
    इच्छा क्यों पूरी हो मन की।
    एक दूसरे से न मिल सके।
    यह विडम्बना है जीवन की।
    - जयशंकर प्रसाद (कामायनी)
    - यही तो मानव जीवन की विडंबना है.

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    1. कवि की इन सुंदर पंक्तियों का स्मरण कराने के लिए आभार प्रतिभा जी, वाकई कितना सही कहा है, यदि कामना ज्ञान युक्त हो तो कर्म शुभ ही होने वाले हैं

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  2. संकल्प ले के खुद ही तोड़ देते हैं ...
    बहुत कुछ है जो मानव को अभी सीखना बाकी है ...

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  3. अत‍ि सुंदर भाव अनीता जी, इस पर आद‍िवास‍ियों की एक प्रथा याद आती है क‍ि उन्हें जब क‍िसी पेड़ को उसकी जगह से उखाड़ना होता है तो उसे वे काटते नहीं बल्क‍ि रोजाना उसके इर्द ग‍िर्द इकठ्ठा होकर उसे गर‍ियाते हैं और आश्चर्य की बात देख‍िए क‍ि एक द‍िन वो पेड़ मुरझााने लगता है ... तो जो आपने कहा क‍ि जैसा कहेंगे वहीं हमारे आसपास घट‍ित भी होने लगता है .. शब्द ब्रह्म है और भाव ईश्वर , आपने बहुत खूब ल‍िखा

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