हम और दुनिया
हम जैसे हैं,
वैसे ही स्वीकार करे दुनिया
चाहते हैं हम,
क्योंकि बदलना हमें भाता नहीं
इसमें श्रम लगता है, खुद को तराशना पड़ता है
जो हमें आता नहीं !
अपनी भूलें भी सहज लगती हैं
आखिर वे किसी का क्या बिगाड़ती हैं ?
पर... दुनिया को तो बदलना होगा
हमारी ख्वाहिश यही है !
वहां असत्य है ( जैसे कि हम सत्य के अवतार हैं )
वहां अन्याय है ( हम तो न्याय के पुजारी हैं )
वहां अधर्म है ( जैसे कि हम धर्म का पाठ पढ़कर ही जन्मे थे )
वहाँ हमें कोई समझता नहीं (जैसे हमने हर किसी को समझने का प्रयास कर ही लिया है )
हम स्वीकारते हैं स्वयं को सारी भूलों सहित
तो क्यों न स्वीकार लें जगत को जैसा वह है !
परमात्मा हर जगह उतना ही समाया है
जिसे वह कमल और कीचड़ दोनों में नजर आया है
वह जानता है
कमल खिल नहीं सकता बिना कीचड़ के
हाँ, उससे ऊपर उठता है जो
वह यह राज देख पाता है
धर्म-अधर्म दोनों के परे जाकर ही
कोई उस एक से जुड़ पाता है !
एक यही बात इंसान को ऊपर नहीं उठने देती ... सब बदलाव तो दुसरे में चाहता है ... और अपनी इसी चाह में तड़पता है ... सटीक लिखा है ...
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28 -4 -2020 ) को " साधना भी होगी पूरी "(चर्चा अंक-3684) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
दूसरों की कमियाँ गिनाने से पहले अपनी सिर्फ उस कमी को भी ठीक करें तो बात बने...सही कहा इसमें तो परिश्रम लगता हैं...बस दूसरों के खोट निकालना आसान है
जवाब देंहटाएंकमल और कीचड़ के भावों से अच्छाई बुराई सभी को स्वीकृत करना ....
बहुत ही लाजवाब भाव
वाह!!!
हम जैसे हैं,
जवाब देंहटाएंवैसे ही स्वीकार करे दुनिया
चाहते हैं हम,
क्योंकि बदलना हमें भाता नहीं
इसमें श्रम लगता है, खुद को तराशना पड़ता है
जो हमें आता नहीं !
अपनी भूलें भी सहज लगती हैं
आखिर वे किसी का क्या बिगाड़ती हैं ?
पर... दुनिया को तो बदलना होगा
हमारी ख्वाहिश यही है !... वाह !बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय दीदी 👌
बहुत खूब !दूसरों की कमियाँ गिनना इंसानी फितरत है ।
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी, कामिनी जी, सुधा जी, अनीता जी, व शुभा जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
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