कौन भला बाहर जा भटके
छाया कैसा मौन कारुणिक
शब्द खो गए इस पीड़ा में,
ठहरे हैं जन जो डूबे थे
जग की मनमोहक क्रीड़ा में !
थमी जिंदगी सी लगती है
दुःख है, दुःख का कारण भी है
जूझ रहा है विश्व समूचा
करोना का निवारण भी है ?
हाँ, पीड़ित है जन-जन इससे
आकुल होते मन भी पूछें,
कब तक आखिर कब तक दुनिया
आहत होकर इससे जूझे !
इक ही हल जो नजर आ रहा
अपने-अपने घर में सिमटें,
जीवन-मरण का जहाँ सवाल
कौन भला बाहर जा भटके !
जाना होगा खुद के भीतर
महाशक्ति का धाम वहीं है,
हर विपदा से पार लगाए
देवी का वरदान वहीं है !
जाना होगा खुद के भीतर
जवाब देंहटाएंमहाशक्ति का धाम वहीं है,
हर विपदा से पार लगाए
देवी का वरदान वहीं है !....वाह! बहुत सुंदर।
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंहर विपता से इंसान जीतेगा ... जीने की जिजीविषा उसे बाहर निकालेगी ...
जवाब देंहटाएंअंतस में जितना जाए आज उतना अच्छा ...
सही कहा है आपने, एक दिन तो इस विपदा से भी मुक्ति होगी ही, आभार !
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