पालघर
जो घर है और जो पालता है
वहाँ नरभक्षी घुस आये हैं
जिनसे भयभीत हैं जनता के रक्षक भी
सुना है
रावण ऋषि-मुनियों को मरवाया करता था
निरीह साधुओं पर यह घिनौना अत्याचार
शायद लौट आयी है
वही अपसंस्कृति और आसुरी अनाचार
जहाँ मनों में सद्भाव शेष न रहा हो
जहाँ साधुओं के प्रति अनास्था का विष घोला जा रहा हो
जहां मानवता की शिक्षा भी लुप्त हो गयी
वह समाज कैसे सफल हो सकता है
गांव जो आश्रय देते थे कभी
अजनबियों को
शक की निगाह से देखने लगे हैं अपनों को
जहाँ जलाया जा रहा हो
बापू के सपनों को
जानना होगा उस भीड़ का अभिप्राय
जो लॉक डाउन में आधी रात को
बाहर निकल आ जाती है
केवल संदेह की बिना पर जानवरों की तरह
घात लगाती है
किसने भरा
यह अविश्वास उनके मनों में
क्यों घेर लिया निरीह यात्रियों को
क्रोध से अंधे हुए इन आदिवासी जनों ने
रक्षक भी बेबस हुए देखते रहे
पालघर में हिंसा के खेल चलते रहे !
निन्दनीय।
जवाब देंहटाएंधरा दिवस की बधाई हो।
सुप्रभात...आपका दिन मंगलमय हो।
आपको भी धरा दिवस की बधाई !
हटाएंसार्थक सृजन आदरणीया दीदी
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनीता जी !
हटाएं