कैसे कोई समझे उसको
वह अजर अमर, है अटल शिखर
अखिल ब्रह्माण्ड में व्याप रहा,
कुसुमों से भी कोमल उर है
बन मानव हर संताप सहा !
लघु पीड़ा से व्याकुल होता
प्रियजन पर प्रेम लुटाता है,
जब कोई राह भटक जाता
करूणाकर पुनः दिखाता है !
वह वाणी का मर्मज्ञ बड़ा
रसिक दिलदार रसज्ञ भी है,
प्रकृति ने अनेकों रूप धरे
भरे प्राण उन्हें डुलाता है !
जड़ चट्टानों से झर निर्झर
उससे ही बह चैतन्य हुए,
अग्नि की लपटों में प्रज्ज्वलित
वायु के प्रचंड झकोरों में !
असीम अंबर सा व्याप्त रहा
सब लीला उसमें घटती है,
कैसे कोई समझे उसको
मेधा भी उससे झरती है !
वह शिव भी है शक्ति भी वही
वह एक बहुत अलबेला है,
उसको भजता मन जिस क्षण जो
रहता ना कभी अकेला है !
स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएं