चाहे जो भी रूप धरा हो
जल ही लहर लहर से सागर
जल ही बूंद भरा जल गागर,
फेन बना कभी हिम् चट्टान
वाष्प बना फिर उड़ा गगन पर !
चाहे जो भी रूप धरा हो
जल तो आखिर जल ही रहता,
मानव मन भी इक नदिया सा
अविरल अविरत बहता रहता !
करुणामय बोल कभी बोले
कभी क्रोध के भाव जगाये,
कभी मधुर गीतों में डूबा
लोभ की फिर छलाँग लगाए !
स्वयं नए संकल्प जगाता
खुद ही उनको काट गिराता,
खुद ही निज को कमतर आँकें
तुलना कर निज को फँसवाता !
अपने ही सिद्धांत बनाये
टूटें तो रह रह पछताए,
सहता है उन पीड़ाओं को
जिनके बिरवे स्वयं लगाए !
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 22 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे Best Whatsapp status 2020 (आप सभी के लिए बेहतरीन शायरी और Whatsapp स्टेटस संग्रह) Janvi Pathak
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