बेखुदी में आँख मूँदे हम सदा ही
हर कदम पर कौन हमसे पूछता है
श्रेय का या प्रेय का तुम मार्ग लोगे,
बेखुदी में आँख मूँदे हम सदा ही
प्रेय के पथ पर कदम रखते रहे हैं !
चन्द कदमों तक हैं राहें अति कोमल
फूल खिलते और निर्झर भी बिखरते,
किन्तु आगे राह टेढ़ी है कँटीली
दिल हुए आहत जहाँ रोते रहे हैं !
फिर कहीं से इक जरा आवाज आती
प्रेय का तज श्रेय का हम मार्ग लेते,
झेलते दुश्वारियां थोड़ी शुरू में
चैन की फिर नींद हम सोते रहे हैं !
सत्य का पथ, प्रेम का पथ श्रेय का है
आज दिल पर हाथ रखकर यह शपथ लें,
प्रेय जो लगता नयन को छल निकलता
पथ वही शुभ श्रेय ही जिसमें छुपा है !
चम्पू काव्य में रची सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत ! शुक्रिया बताने के लिए, मुझे ज्ञात नहीं था.
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंप्रेम का पथ सदा उत्तम रास्ता है ... इश्वर का रास्ता यही है ... सत्य इसी रास्ते मिलता है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना ...
स्वागत व आभार !
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