सोमवार, फ़रवरी 1

ब्रह्म मुहूर्त का कोरा पल

ब्रह्म मुहूर्त का कोरा  पल 

सोये हैं अभी पात वृक्ष के 
स्थिर जैसे हों चित्रलिखित से 
किन्तु झर रही मदिर सुवास 
छन-छन आती है खिड़की से 

निकट ही कंचन मौन खड़ा है 
मद्धिम झींगुर गान गूँजता 
पूरब में हलचल सी होती 
नभ पर छायी अभी कालिमा 

एक शांत निस्तब्ध जगत है 
ब्रह्म मुहूर्त का कोरा  पल 
सुना, देवता भू पर आते 
विचरण कर बाँटते अमृत 

कोई हो सचेत पा लेता 
स्वर्गिक रस आनंद सरीखा 
जैसे ही सूरज उग आता 
पुनः झमेला जग का जगता 
 

12 टिप्‍पणियां:

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-2-21) को "शाखाओं पर लदे सुमन हैं" (चर्चा अंक 3965) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा


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  3. ब्रह्म मुहूर्त का सुकून भरा चित्र खींचा है आपने।

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  4. इस मुहूर्त में वातारण में दिव्यता का आभास और नये चैतन्य का संचार होता है -सुन्दर चित्र उकेरा है आपने!

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  5. एक शांत निस्तब्ध जगत है
    ब्रह्म मुहूर्त का कोरा पल
    सुना, देवता भू पर आते
    विचरण कर बाँटते अमृत

    कोई हो सचेत पा लेता
    स्वर्गिक रस आनंद सरीखा
    जैसे ही सूरज उग आता
    पुनः झमेला जग का जगता..ब्रम्ह मुहूर्त की खूबसूरत बेला में जीवन को गति देती अभिव्यक्ति..

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  6. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
    सादर

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  7. आप सभी सुधीजनों का हृदय से स्वागत व आभार !

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  8. धुंधलाई प्रतीति में जो अधिक स्पष्ट दिखाई दे वही तो जागरण है । ब्रह्म मुहूर्त एवं संध्या काल वही क्षण है ।

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