सोमवार, फ़रवरी 15

उसे बहने दो

उसे बहने दो


वह बहना चाहता है 

निर्विरोध निर्विकल्प 

हमारे माध्यम से 

प्रेम और आनंद बन 

पाहन बन यदि रोका उसका मार्ग 

तो वही बहेगा रोष और विषाद बनकर !

वह हजार-हजार ढंग से प्रकट होता है 

यदि राम बनने की सम्भावना न दिखे 

तो रावण बन सकता है 

वह उस ऊर्जावान नदी की तरह है 

जिसे मार्ग न मिले तो बाढ़ बन जाती है 

अपने ही तटों को डुबोती !


वह बहना चाहता है 

शांति और सुख बन

यदि ओढ़ ली है दुःख की चादर

तो वही छा जायेगा 

अशांति बनकर रग-रग में 

 बाल्मीकि बनने की सम्भावना न जगायी

तो  बना रह सकता है रत्नाकर युगों तक

उसे तो पनपना ही है 

वह जीवन है !


वह बहना चाहता है 

ज्ञान और पवित्रता बन 

यदि अज्ञान ही रास आता है किसी को 

तो दूषित विचारधारा जन्म लेगी उसी कोख से 

जहां से गूँज सकते थे पावन मन्त्र 

नकारात्मकता भी तो अशुचि है न 

सूतक लगा ही रहेगा वतावरण में 

उसे तो जन्मना ही है !


यदि स्वयं को नहीं प्रकटाया

तो राग-द्वेष ही सम्भाल लेंगे अंतरात्मा 

उसे बहने दो, मार्ग दो 

वह ऊर्जा है 

जो ढूंढ ही लेती है अपना मार्ग 

लेकिन वही 

जो हम उसे देते हैं 

वह भाग्य है लेकिन उसका जन्म होता है 

हमारी ‘हाँ’ या ‘न’ से ! 

 

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