दिल की दास्तां
जरा गौर से देखा तो यही पाया
मगज है कि शिकायतों का इक पुलिंदा
जो हर बात पे खफा रहता था
यूँ तो जमाने के लिए बंद था दिल का द्वार
पर उनमें ही हो जाता था
खुद का भी शुमार
क्योंकि दिल से होकर ही खुशी उतरती है भीतर
जब-जब कोई नाराज है जमाने से
तब-तब दूर है दिल के खजाने से
औरों के लिए न सही
खुद के लिए मुसकुराना मत छोड़ो
बेदर्द है जमाना कहकर
दिल पर पत्थरों की दीवार मत जोड़ो
यह दुश्वारियाँ नहीं सह सकता
बहुत नाजुक है
अपना हो या औरों का
इसे भूलकर भी मत तोड़ो
यह टूट जाता है जब कोई उदास होता है
चुप सी लगाकर बेबात ही खुद से खफा होता है
जिस तरह भी रहे कोई जमाने में
बस दूर न रहे दिल के तराने से
जो वह गाता है दिन-रात
हम अनसुना करते हैं
और यूँ ही गम के आंसुओं से दामन भरते हैं !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 24 फरवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"जिस तरह भी रहे कोई जमाने में
जवाब देंहटाएंबस दूर न रहे दिल के तराने से "
बहुत अच्छी बात कही आपने।
स्वागत व आभार यशवंत जी !
हटाएंकितनी अच्छी सीख है । लेकिन हम हमेशा कहाँ इस बात का ध्यान रख पाते । सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं आप, इसका खामियाजा भी उठाते हैं
हटाएंस्मरणीय ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंदिल और दिमाग़ दोनो का उचित समन्वय बहुत आवश्यक है.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही, स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार शास्त्री जी ! ब्लॉग जगत के लिए चर्चा मंच का योगदान अप्रतिम है
जवाब देंहटाएंऔरों के लिए न सही
जवाब देंहटाएंखुद के लिए मुसकुराना मत छोड़ो
बेदर्द है जमाना कहकर
दिल पर पत्थरों की दीवार मत जोड़ो
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आप का यह दर्शन बहुतों का मार्गदर्शन कर सकता है। एक बेहद सुंदर और सार्थक सृजन के लिए आपको ढेरों शुभकामनाएँ।
आपको भी शुभकामनाएं, स्वागत व आभार !
हटाएंबेहतरीन रचना आदरणीया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंउत्तम अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंऔरों के लिए न सही
खुद के लिए मुसकुराना मत छोड़ो
बेदर्द है जमाना कहकर
दिल पर पत्थरों की दीवार मत जोड़ो!
लाजवाब!
--ब्रजेंद्रनाथ
आप सभी सुहृदयी पाठकों का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
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