अब भी उस का दर खुला है
खो दिया आराम जी का
खो दिया है चैन दिल का,
दूर आके जिंदगी से
खो दिया हर सबब कब का !
गुम हुआ घर का पता ज्यों
भीड़ ही अब नजर आती,
टूटकर बैठा सड़क पर
घर की भी न याद आती !
रास्तों पर कब किसी के
फैसले किस्मत के होते,
कुछ फ़िकर हो कायदों की
हल तभी कुछ हाथ आते !
दूर आके अब भटकता
ना कहीं विश्राम पाता,
धनक बदली ताल बदली
हर घड़ी सुर भी बदलता !
अब भी उस का दर खुला है
जहाँ हर क्षण दीप जलते,
अब भी संभले यदि कोई
रास्ते कितने निकलते !
"अब भी उस का दर खुला है
जवाब देंहटाएंजहाँ हर क्षण दीप जलते,
अब भी संभले यदि कोई
रास्ते कितने निकलते "
सही कहा आपने।
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंजीवन वर्तुलाकार है पर यह सब कुछ गंवा देने के बाद ही भान होता है । अंततः लौट कर बुद्धु अपने ही आता है । उत्कृष्ट भाव ।
जवाब देंहटाएंअब भी उस का दर खुला है
जवाब देंहटाएंजहाँ हर क्षण दीप जलते,
अब भी संभले यदि कोई
रास्ते कितने निकलते !
बहुत ही सुंदर रचना ,अब नहीं सभलेगे तो कब ,सादर नमन अनीता जी