ताल-लय हर हृदय प्रकटे
गा रही है वाग देवी
गूँजती सी हर दिशा है,
शांत स्वर लहरी उतरती
शुभ उषा पावन निशा है !
श्वेत दल है कमल कोमल
श्वेत वसना वीणापाणि,
राग वासन्ती सुनाये
वरद् हस्ता महादानी !
ज्ञान की गंगा बहाती
शांति की संवाहिका वह,
नयन से करुणा लुटाये
कला की सम्पोषिका वह !
भा रही है वाग देवी
सुन्दरी अनुपम सलोनी,
भावना हो शुद्ध सबकी
प्रीत डोरी में पिरोनी !
जागे मेधा जब सोयी
अर्चना तब पूर्ण होगी,
ताल-लय हर हृदय प्रकटे
साधना उस क्षण फलेगी !
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएं..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पंक्तियों से सजी बहुत सुंदर रचना..
स्वागत व आभार !
हटाएंमाँ शारदे को नमन करते हुए सुन्दर रचना ... उनका आशीर्वाद रहे तो जीवन में सफलता मिलती है ...
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं आप, स्वागत व आभार !
हटाएंअहा , कितनी सुंदर प्रार्थना । अपने ब्लॉग पर आपको पा कर हर्ष हुआ । आभार ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संगीता जी !
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-02-2021) को "बज उठी वीणा मधुर" (चर्चा अंक-3980) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत आभार !
हटाएंसुन्दर निवेदन और प्रार्थना..अनोखी कृति..
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंमनोरम अंकन .
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंहार्दिक नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रार्थना।
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जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर वंदना,
माँ सरस्वती की कृपा हम सब पर बनी रहें
माँ सरस्वती को सादर नमन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रार्थना
जवाब देंहटाएंकमाल का सृजन
आप सभी सुधीजनों का हृदय से स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंमाँ शारदे को नमन
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