यह पल
जो अनंतानंत ब्रह्माडों का स्वामी है
वही भीतर ‘मैं’ होकर बैठा है
एक होकर मानो दो में बंट गया है
समय अखंड है, अखंड है चेतना
जैसे जीवन अखंड है
जन्म-मृत्यु, प्रकाश-छाया,
जगत-जगदीश्वर
भेद सारे माया ने दिखाए !
हर नया पल बन सकता है बीज
आने वाले हजार पलों का जन्मदाता
यदि जाग जाये कोई इस पल में
तो धीरे से वह अनंत मन को छू जाता
न जाने किस श्वास में
वर्तमान का एक पल
प्रेम की डाली से झरे फूल की तरह
भर जाये विश्वास की सुवास
या सीप में गिरी
मोती बनने को उत्सुक बूँद की तरह
छू जाए अंतर का आकाश !
बस ऐसे ही पल का इंतज़ार है ।
जवाब देंहटाएंइंतजार अवश्य फल लाएगा
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-07-2022) को चर्चा मंच "दिल बहकने लगा आज ज़ज़्बात में" (चर्चा अंक-4492) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
हटाएंभेद सारे माया ने दिखाए ! - wah!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुंदर आशावादी परिणाम।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कुसुम जी !
हटाएंप्रेम की डाली से झरे फूल की तरह
जवाब देंहटाएंभर जाये विश्वास की सुवास
या सीप में गिरी
मोती बनने को उत्सुक बूँद की तरह
छू जाए अंतर का आकाश !
वह पल कब और किसे नसीब हो
लाजवाब सृजन।