अनजानी राहों से आकर
एक स्वपन चिर काल पुराना,
एक तंतु जो जोड़े तुझ से
मधुरिम स्मृति की बहती धारा !
कोई है जो छिपा हुआ भी
जैसे चारों ओर बिछा है,
शब्दों की गहराई में जो
मीलों मधुर मौन फैला है !
सुरभि लिए पवन का झोंका
ज्यों उसका संदेशा लाये,
कोयल की मधु कूजन जैसे
सुमिरन की माला सी गाये !
कोई तार जुड़ा है जैसे
मन क्यों उसकी राह ताकता,
अनजानी राहों से आकर
सुधिया अपनी फिर भर जाता !
जीवन कोई बंद द्वार ज्यों
अपनी ओर बुलाता सबको,
ज्यों उज्ज्वल उपहार प्रीत का
सहज बँट रहा पालो इसको !
जीवन कोई बंद द्वार ज्यों
जवाब देंहटाएंअपनी ओर बुलाता सबको,
ज्यों उज्ज्वल उपहार प्रीत का
सहज बँट रहा पालो इसको !
न जाने यादों के तार किससे और कितने गहरे जुड़े हैं । बेहतरीन रचना ।
सुंदर व त्वरित प्रतिक्रिया हेतु आभार संगीता जी!
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(०५-०७ -२०२२ ) को
'मचलती है नदी'( चर्चा अंक-४४८१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी!
हटाएंकोई तार जुड़ा है जैसे
जवाब देंहटाएंमन क्यों उसकी राह ताकता,
अनजानी राहों से आकर
सुधिया अपनी फिर भर जाता !
..ये तार ही तो है जो खींच ले जाते हैं हमें उस ओर
स्वागत व आभार कविता जी!
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआभार अनुराधा जी!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मनोज जी!
हटाएंवाह अनुभूतियों के आदान प्रदान के लिये तार जुड़ना ही सबसे पहली और अनिवार्य बात है . बहुत गहरी और व्यापक अर्थ लिये सुन्दर कविता .
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार गिरिजा जी !
हटाएंबहुत सुंदर सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंअच्छी लगी...सुन्दर पोस्ट.
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