रोज नया सूरज उगता है
प्रतिक्षण नूतन जल ले आती
नदिया रोज नयी होती है,
सदा प्रवाहित अंतर्मन भी
नव पल्लव सा खिल उठता है !
रोज नया सूरज उगता है
रात्रि नया सवेरा लाए,
नयी सुरभि किसलय ले आते
ताजा गीत कवि लिख लाए !
बासी मन क्यों लिये घूमते
ज्ञान नया होता है प्रतिदिन,
बासी हर विचार त्याग दें
बासी फूल न होते अर्पण !
छोड़ भूत की कल्मष कटुता
बढ़ आगे नव भाव जगाएं,
नई कल्पना के प्रेम में
पड़ कर नित नूतन हो जाएँ !
कथनी से करनी दुगनी हो
जिह्वा एक, दो कर दे डाले,
नया-नया निर्माण करें नित
फिर उसके चरणों में डालें !
पिटी-पिटाई बात न हो अब
साहस का हम सँग करें
छोड़ लकीरों को पीछे फिर
नित नयी मंजिलें तय करें !
अनिता निहालानी
१६ जून २०००
पिटी-पिटाई बात न हो अब
जवाब देंहटाएंसाहस का हम सँग करें
छोड़ लकीरों को पीछे फिर
नित नयी मंजिलें तय करें !
बहुत सच है .....कल को छोड़ देने में ही भला है ......सुन्दर |
छोड़ लकीरों को पीछे फिर
जवाब देंहटाएंनित नयी मंजिलें तय करें
आशा का दामन थामे हुए
कुछ सार्थक शब्द ....
अच्छी कविता .
छोड़ भूत की कल्मष कटुता
जवाब देंहटाएंबढ़ आगे नव भाव जगाएं,
नई कल्पना के प्रेम में
पड़ कर नित नूतन हो जाएँ !
कल को भूलना ही पड़ेगा तभी आज अच्छा होगा , सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई
बासी मन क्यों लिये घूमते
जवाब देंहटाएंज्ञान नया होता है प्रतिदिन,
बासी हर विचार त्याग दें
बासी फूल न होते अर्पण !
बहुत सार्थक और प्रेरक प्रस्तुति..आभार
पिटी-पिटाई बात न हो अब
जवाब देंहटाएंसाहस का हम सँग करें
छोड़ लकीरों को पीछे फिर
नित नयी मंजिलें तय करें
aapki sundar abhivyakti sath rahi to yahi hoga anita ji.badhai.
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएंकुछ चिट्ठे ...आपकी नज़र ..हाँ या ना ...? ?
छोड़ भूत की कल्मष कटुता
जवाब देंहटाएंबढ़ आगे नव भाव जगाएं,
नई कल्पना के प्रेम में
पड़ कर नित नूतन हो जाएँ !
बहुत सुंदर गीत के द्वारा एक सार्थक सन्देश. बधाई.
बासी मन क्यों लिये घूमते
जवाब देंहटाएंज्ञान नया होता है प्रतिदिन,
बासी हर विचार त्याग दें
बासी फूल न होते अर्पण
सुन्दर भाव ..अच्छा सन्देश देती रचना
कथनी से करनी दुगनी हो
जवाब देंहटाएंजिह्वा एक, दो कर दे डाले,
नया-नया निर्माण करें नित
फिर उसके चरणों में डालें !
waah
कथनी से करनी दुगनी हो
जवाब देंहटाएंजिह्वा एक, दो कर दे डाले,
नया-नया निर्माण करें नित
फिर उसके चरणों में डालें
बेहद अच्छी पंक्तियाँ
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आपकी पोस्ट यहाँ भी है-
नयी-पुरानी हलचल
bahut sundar prastuti
जवाब देंहटाएंछोड़ भूत की कल्मष कटुता
जवाब देंहटाएंबढ़ आगे नव भाव जगाएं,
नई कल्पना के प्रेम में
पड़ कर नित नूतन हो जाएँ ....!बहुत सार्थक और प्रेरक प्रस्तुति..आभार
पिटी-पिटाई बात न हो अब
जवाब देंहटाएंसाहस का हम सँग करें
छोड़ लकीरों को पीछे फिर
नित नयी मंजिलें तय करें !
bahut sunder bhav liye saarthak rachanaa.badhaai.
please visit my blog.thanks.
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच{16-6-2011}
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ सुंदर गीत लिखा है बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर....
जवाब देंहटाएंमुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि
जवाब देंहटाएंआप की ये रचना 14-06-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
जय हिंद जय भारत...
कुलदीप ठाकुर...
आभार, कुलदीप जी !
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