शुक्रवार, जून 16

ओ मेरे मन !

ओ मेरे मन !


ओ मेरे मन !
जरा थम तो सही
कर पहचान खुद से
हजार छिद्रों वाला तू
पूर्ण क्योंकर हो सकेगा
अभाव यह तेरा कभी न भरेगा
तू मान ही ले
यह सच्चाई आज जान ही ले

तुझे ऐसा ही बनाया है
ऊपरवाले ने ही खेल रचाया है
तू कभी गाता कभी रोता है
दोनों बार ही नयन भिगोता है
दो कलों के मध्य डोलता रहता
कभी न खुद के करीब होता है

ओ मेरे मन !
थम जायेगा तू जिस पल
रुक जाएगी तेरी हलचल
जानेगा अपने कूल को
प्रकाश के उस मूल को


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