तृषित उर की मालती है
खिल न पाया कमल
दिल का
यही पीड़ा सालती
है,
इक तंद्रालस ने
घेरा
बात कल पर टालती
है !
जगत केवल इक
बहाना
एक अवसर, रास्ता इक,
खोज खुद की चल
रही है
तृषित उर की
मालती है !
साज भी है
उँगलियाँ भी
मृदु रागिनी भी
बज रही,
श्रवण लेकिन सुन
न पाते
चेतना धुन पालती है !
नीलवर्णी शुभ्र
नभ पर
डोलते हैं मेघ
सुंदर,
इस व्यूह में खो
गया मन
पाश माया डालती
है !
चले मीलों दूर
फिर भी
मंजिलों से रहते
सदा,
नींद लोरी दे
सुलाए
सोमरस जो ढालती
है !
चले मीलों दूर फिर भी
जवाब देंहटाएंमंजिलों से रहते सदा,
नींद लोरी दे सुलाए
सोमरस जो ढालती है !
बहुत ही सुन्दर !
अलंकृत शब्द
जैसे बोल रहें हों ,
हृदय के पट खोल रहें हों ,
सजीव रचना आदरणीय आभार।
"एकलव्य"
बहुत उम्दा!!
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