जादूगर और माया
चला आता उसी तरह
दुःख पीछे सुख के
जैसे आदमी के
पीछे उसकी छाया
भर दामन में ख़ुशी
बाँटने निकले कोई
तो बदल देती है
गमों में उसको माया
भरें हर्जाना यदि
चाहा सुख कण भर भी
चुकायें कीमत हर
आसक्ति हर मोह की
कुछ भी यहाँ
मुफ्त नहीं मिलता
बिना एक हुए माटी
से कोई बीज नहीं खिलता
जब चाह जगे भीतर
सत् को पाने की
तब जाकर ही इस
खेल की पहचान होगी
भीतर जाने कौन से
गह्वर में रहता है इक जादूगर
जिसे रास नहीं
आता तिल भर भी नकार
दिखाता है वही तो
आईना बार-बार !
बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं !!
कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी,वह बहुरूपिया जादूगर अपने हिसाब से हाँकता है सब को .
जवाब देंहटाएंआदरणीया
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना के लिए आभार
वंदनाजी, सतीश जी, ओंकार जी, प्रतिभा जी व राजेन्द्र जी आप सभी सुधीजन का स्वागत व आभार !
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