गुरुवार, जून 29

विपरीत का गणित

विपरीत का गणित 

जागरण यदि स्वप्न सा प्रतीत हो 

तो स्वप्न में जागरण घटेगा 

 कुरुक्षेत्र बन जाये धर्मक्षेत्र, तो 

हर कर्म से मंगल सधेगा 

मन में विराट झलके 

तो लघु मन खो जाएगा 

जैसे बूँद में नज़र आये सिंधु 

तो सिंधु हथेली में समा जायेगा 

यहाँ विपरीत साथ-साथ चलते हैं 

धूप-छाँव एक वट के नीचे पलते हैं 

श्रमिक की नींद बड़ी गहरी है 

मौन में छिपी स्वरलहरी है !


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