हे कृष्ण !
कितना दुर्लभ है इस जग में
कोई निर्दोष हास्य
निष्कपट अंतर
हे कृष्ण ! बहुत ऊँचे मापदंड
नहीं बना दिये है तुमने !
यहाँ तो हर मुस्कान के पीछे
छिपा है कोई अभिप्राय
और तुम कहते हो
हरेक भीतर ऐसा ही है
कि अधम से अधम भी
बन सकता है तुम्हारा प्रिय
जिस क्षण वह मोड़ लेता है
अपनी दिशा तुम्हारी ओर !
बहुत ही भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार भारती जी!
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