करें सजदा हर कदम पर
हर तरफ़ जलवा उसी का
हर तरफ़ उसका ही नूर,
कैसे कोई क़ैद भला
रहे ख़ुद में ख़ुद से दूर !
बीज जैसे खोल में हो
राज मन ऐसे छुपाये,
भीग जाये भावना में
प्रेम का अंकुर उगाये !
एक दिन वह वृक्ष होगा
आस्था के पुष्प धारे,
दे सहारा पंछियों को
रात-दिन जो गीत गायें !
करें सजदा हर कदम पर
क्या हमारे पास अपना,
चार दिन का यह सफ़र है
बीतता ज्यों मधुर सपना !
तू चला है हाथ थामे
सदा ही रहमत बरसती,
तू सँवारे ज़िंदगी को
हर घड़ी जो है बदलती !
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी रचना चर्चा मंच के अंक
'चार दिनों के बाद ही, अलग हो गये द्वार' (चर्चा अंक 4668)
में सम्मिलित की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं।
सधन्यवाद।
बहुत बहुत आभार रवींद्र जी!
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
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