बुधवार, जनवरी 30

बापू के नाम एक पत्र


बापू के नाम एक पत्र


हुए डेढ़ सौ वर्ष आज, जब वसुंधरा पर तुम थे आए 
देवदूत बन घोर तिमिर में, बने प्रकाश पुंज मुस्काए !

जाने किस माटी के बने थे, सत्य की इक मशाल जलाई
कोटि-कोटि भारत वंशी हित, निज सुख-सपन की बलि चढ़ाई !

कोमल पुष्प सा अंतर किन्तु, फौलादी संकल्प जगाये
भारत की जनता को फिर से, मुक्त गगन के स्वप्न दिखाए !

देवभूमि भारत कैसा हो, इसकी नींव तुम्हीं ने रखी
दूर गाँव के सन्नाटे में, हर झोंपड़ी हो सजी हुई !

दीन-हीन दुर्बल न रहें वे, हों किसान अथवा मजदूर 
समुचित श्रम का प्रतिदान मिले, वे समर्थ बनें न कि मजबूर !

तन पर वस्त्र, आश्रय सुंदर, शिक्षा का सम अधिकार मिले
गाँव-शहर में हर व्यक्ति को, सहज ही राष्ट्र का प्यार मिले !

एक देश में रहने वाले, एक सूत्र में बंधे सभी हैं
संविधान की मूल आत्मा, समता और बन्धुता ही हैं !

बापू ! आज हम फख्र से कहते, भारत ने करवट ली है
उसी राह पर चला गर्व से, नींव जिसकी तुमने रखी है !

स्त्री-पुरुष वृद्ध-युवा सभी, भारतभू का निर्माण कर रहे
आदर्शों से प्रेरित नेता, उनमें नव उत्साह भर रहे !

आज गर्व से कह सकते हैं, बापू के सपनों का भारत
दुनिया जिसे निहार रही है, कदम बढ़ाता हँसता भारत !



शुक्रवार, जनवरी 25

‘मैं’ से ‘हम’ होने में सुख है



‘मैं’ से ‘हम’ होने में सुख है 


दिल में जोश गीत अधरों पर
लिए हाथ में हाथ डोलते,
इक दूजे के मित्र बने अब
अंतर्मन के राज खोलते !

जीवन एक यात्रा अभिनव
प्रियतम का यदि संग साथ हो,
‘मैं’ से ‘हम’ होने में सुख है 
धूप कड़ी या घन वर्षा हो !

दिवस महीने बरस दशक अब
संग-संग जीते बीते हैं,
नन्ही किलकारियाँ सी थीं जो
हुई युवा अब उड़ने को हैं !

सुंदर घर वर देख भाल कर
उन्हें नये बंधन में बाँधें,
यही स्वप्न अब मन में जगता
मात-पिता का धर्म निबाहें !

इसी तरह हँसते-मुस्काते
जीवन की मंजिल को पालो,
निज कौशल सामर्थ्य बढ़ाकर
इस जग के भी कुछ गम हर लो !

आज छोटी बहन व बहनोई के विवाह की सालगिरह है. 

शुक्रवार, जनवरी 18

द्वार खुलें बरबस अनंत में



द्वार खुलें बरबस अनंत में

कहाँ छुपा वह मन मतवाला
गीत गुने जिसने सावन के,
एक सघन सन्नाटा भीतर
नहीं चरण भी मन भावन के !

शून्य अतल पसरा मीलों तक
मदिर, मधुर सा कोई सपना,
कुछ भी नजर नहीं आता है
बेगाना ना कोई अपना !

क्या कोई बोले किससे अब
दूजा रहा न कोई जग में,
कदमों में राहें सिमटी हैं
द्वार खुलें बरबस अनंत में !


बुधवार, जनवरी 9

नया वर्ष


नया वर्ष


समय के अनंत प्रवाह में...
गुजर जाना एक वर्ष का, मानो
सागर में एक लहर का उठना
और खो जाना !
और इस दिन
लाखों की आतिशबाजी जलाना
उस दुनिया में ?
जहाँ लाखों घरों में अँधेरा है
एक दिये के लिए भी नहीं है तेल
नया वर्ष तो तब भी आएगा,
जब हम कान फोड़ पटाखे नहीं जलायेंगे
नहीं खोएंगे होश आधी रात को सडकों पर
अजीब रिवाज जन्म ले रहे हैं शहर की हवा में
नये साल के पहले दिन
इच्छाओं की सूची बहुत लम्बी होती है मनों में
तभी तो मन्दिरों के बाहर पंक्तियाँ भी
दोपहर तक खत्म होने को नहीं आतीं !

मंगलवार, जनवरी 8

नये वर्ष में




नये वर्ष में

यूँ तो हर घड़ी नयी है
हर पल घटता है पहली बार
हर क्षण जन्मता है समय की अनंत कोख में
प्रथम और अंतिम बार एक साथ
दोहराया नहीं जाता सृष्टि में कुछ भी
क्योंकि अनंत है सामर्थ्य इसका
नहीं आएगा बीता वर्ष दोबारा
इस महायज्ञ में होने शामिल
फिर भी हर आगत को नूतन गढ़ना है
यदि विकास के सोपान पर चढ़ना है
और अंतर में गहरे बढ़ना है
नया अंदाज हो बात को कहने का
सीखें गुर दरिया सा सदा बहने का !


सोमवार, दिसंबर 31

नए साल की दुआ

बीता बरस जरूर है
बीत न जाये प्यार,
आने वाले साल में
खुशियाँ मिलें हजार ।

जंग लगे न सोच पर
बना रहे उल्लास,
हर पल यहाँ अमोल है
जो भी अपने पास ।

श्वासों में विश्वास हो
उर में सुर संगीत,
कदमों में थिरकन भरी
कहता जीवन गीत ।

सुख की चादर ओढ़ कर
दुख न आये द्वार ,
पलकों के अश्रु बनें
अधरों पर मुस्कान ।

शुक्रवार, दिसंबर 14

घाटियाँ जब खिलखिलायीं


घाटियाँ जब खिलखिलायीं

बह रही थी नदी उर की
बने पत्थर हम अड़े थे,
सामने ही था समुन्दर
नजर फेरे ही खड़े थे !

गा रहा था जब कन्हैया
बांसुरी की धुन सुनी ना,
घाटियाँ जब खिलखिलायीं
राह भी उनकी चुनी ना !

भीगता था जब चमन यह
बंद कमरों में छिपे थे,
चाँद पूनो का बुलाता
नयन स्वप्नों से भरे थे !

सुख पवन शीतल बही जब
चाहतों की तपिश उर में,
स्नेह करुणा वह लुटाता
मांगते थे मन्दिरों में !

आज टूटा भरम सारा
झूमती हर इक दिशा है,
एक से ही नूर बरसे
प्रातः हो चाहे निशा है !
 


मंगलवार, दिसंबर 11

रास्ते में फूल भी थे


रास्ते में फूल भी थे


 कंटकों से बच निकलने
में लगा दी शक्ति सारी,
रास्ते में फूल भी थे
बात यह दिल से भुला दी !

उलझनें जब घेरती थीं
सुलझ जायें प्रार्थना की,
किन्तु खुद ही तो रखा था
चाहतों का बोझ भारी !

नींद सुख की जब मिली थी
स्वप्न नयनों में भरे खुद,
मंजिलें जब पास ही थीं
थामे कहाँ बढ़ते कदम !

हाथ भर ही दूर था वह
स्वर्ग सा जीवन सलोना,
कब भुला पाया अथिर मन
किन्तु शिखरों का बुलावा !

शुक्रवार, दिसंबर 7

अपने जैसा मीत खोजता




अपने जैसा मीत खोजता


ओस कणों से प्यास बुझाते,
जगती के दीवाने देखे,
चकाचौंध पर मिटने वाले
बस नादां परवाने देखे !

जो है, वही उन्हें होना है
अपने जैसा मीत खोजते,
घर है, वहीं उन्हें बसना है
वीरानों में रहे भटकते !

बदल रहा है पल-पल जीवन
जिसमें थिरता कभी न मिलती,
बांट रहा है किरणें सूरज
दिल की लेकिन कली न खिलती !

घुला-मिला सा खारापन ज्यों
तप कर निर्मल नीर त्याग दे,
छुप कर बैठा निजता में ‘पर’
वैरागी वह मिटा राग दे !

 गीत सुरीला गूँज रहा है
कोई चातक श्रवण लगाए,
मतवाला ढूंढें न मिलता
उर में पावन प्रीत जगाए !


मंगलवार, नवंबर 27

स्वर्ण रश्मियों सा छू लेता




स्वर्ण रश्मियों सा छू लेता



माँ शिशु को आँचल में छुपाती
आपद मुक्त बनाती राहें,
या समर्थ हथेलियाँ पिता की
थामें उसकी नन्हीं बाहें !

वैसे ही सिमटाये अपने
आश्रय में कोई अनजाना,
उस अपने को, जिसने उसकी
चाहत को ही निज सुख माना ! 

अपनाते ही उसको पल में 
बंध जाती है अविरत डोर,
वंचित रहे अपार नेह से
 जो मुख न मोड़े उसकी ओर !

जो बेशर्त बरसता निशदिन 
निर्मल जल धार की मानिंद,
स्वर्ण रश्मियों सा छू लेता
अमल पंखुरियों को सानंद !

कर हजार फैले चहूँ ओर
थामे हैं हर दिशा-दिशा से,
दृष्टिगोचर कहीं ना होता
पर जीवन का अर्थ उसी से !

गुरुवार, नवंबर 15

बचपन लौटा था उस पल में



बचपन लौटा था उस पल में



बचपन को ढूँढा यादों में
बाल दिवस पर नगमे गाये,
मन के गलियारों में कितने
साथी-संगी खड़े दिखाए !

रोते हुए किसी बच्चे के
पोँछे आँसू और हँसाया,
नन्ही सी ऊँगली इक थामी
दूर गगन में चाँद दिखाया !

बचपन लौटा था उस पल में
भीतर कोई खेल रहा था,
बाहर मुस्काती थीं आँखें
जीवन लास्य उड़ेल रहा था !

फुटपाथों पर बीते बचपन
इससे बड़ी न पीड़ा होगी,
खिल सकती थी जो बगिया में
शैशव में ही कली तोड़ दी !

होनहार बिरवान सभी हैं
जरा उन्हें सिखलाना होगा,
बचपन खो जाये न अधखिला
मार्ग सही दिखलाना होगा !

तन उर्जित है जोश भरा मन
बन कुम्हार बस गढ़ना भर है,
शिशु के भीतर छुपा युवा है
दो चार कदम बढ़ना भर है !