आज नमन करते हैं तुझको
माँ कुछ ऐसे दिल में रहती
होने का भ्रम भी न देती,
दुनिया से हो जाये रवाना
मन से कभी न रुखसत होती !
जिसके द्वारा जग में आये
जिसके होने से निज होना,
जिसकी अंगुली थाम के सीखा
नन्हें पैरों पैरों चलना !
जिसने भाषा संस्कार दिये
वह धैर्य, प्यार की मूरत है,
वात्सल्य का एक खजाना
हर बच्चे की जरूरत है !
जिसको बहुत सताया हमने
जिसको बहुत रुलाया हमने,
उसने बस मुस्कान बिखेरी
उसको कहाँ हंसाया हमने !
बच्चों को आशीषें देती
उनकी झोली भर-भर देती,
खुद तो भूखी रह सकती थी
घर भर को तृप्त कर देती !
माँ की छाया कितनी कोमल
उसका साया सदा साथ है,
स्मृति ही सम्बल भर देती
सिर पर उसका सदा हाथ है !
जन्मदिन तो याद नहीं है
उसने कभी मनाया कब था,
आज मनाते पुण्यतिथि हम
अंतिम वह क्षण आया जब था !
इतनी घुली-मिली थीं खुद में
जान नहीं पाए तुम क्या थीं,
बच्चों का बस भला चाहतीं
ख्वाहिश और तुम्हारी क्या थी !
माँ रब जैसा रखे कलेजा
तभी सभी कुछ सह जाती है,
रेशा-रेशा प्रेम पगा है
बिन बोले सब कह जाती है !
आज नमन करते हैं तुझको
तेरे बहाने हर इक माँ को,
मातृभूमि व मातृभाषा को
जग जननी जगदम्बा माँ को !
खूबसूरत प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंमेरी बधाई स्वीकारें ||
*आज नमन करते हैं तुझको
जवाब देंहटाएंतेरे बहाने हर इक माँ को,
मातृभूमि व मातृभाषा को
जग जननी जगदम्बा माँ को !*
मातृशक्ति को प्रणाम!
बेहद सहज एवं प्रवाहमय कविता!
जन्मदिन तो याद नहीं है
जवाब देंहटाएंउसने कभी मनाया कब था,
आज मनाते पुण्यतिथि हम
अंतिम वह क्षण आया जब था !
...सुन्दर...
माँ ऐसी ही होती है.
बहुत सुन्दर ... माँ के लिए जितना भी कहा जाये कम है
जवाब देंहटाएंमाँ ......तुझे सलाम........बहुत सुन्दर है कविता|
जवाब देंहटाएंरविकर जी, अनुपमा जी, विद्या जी,संगीता जी, इमरान आप सभी का स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंमाँ हमारी आखिरी साँस में भी जीवित रहती है..माँ को नमन..
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