सुरभि अनोखी
गूंजती हैं जब वेद ऋचाएँ कहीं
या हवा के कंधों पर उड़कर
आती हैं अजान की आवाजें..
ले आती हैं सुगन्धि उसकी...
आत्मा के नासापुट ढूँढते रहे हैं
जिस सुरभि को जन्मों–जन्मों से
माटी की देह का नहीं कुछ मोल जिसके बिना
माटी में मिल हो जाये माटी
इससे पूर्व सुरभि भरे भीतर
जो व्याप्त है कण-कण में
पर मन का धुँआ इतना घना है
कि वह गंध खो जाती है
नहीं पहुंचती आत्मा तक...
मन का धुँआ इतना घना है
जवाब देंहटाएंकि वह गंध खो जाती है
नहीं पहुंचती आत्मा तक...अक्षरसः सच
बेहद सुन्दर रूहानी अभिव्यक्ति आत्मा के संगीत सी .
जवाब देंहटाएंमन पावस हो गया पढ़कर ....!!
जवाब देंहटाएंआभार...
मन पर छाये धुंएं का सहज चित्रण .. सुगंधि की तलाश में भटकता है मन .
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंवैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।
जवाब देंहटाएंumda aatmabhivyakti bahut sundar.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत खुबसूरत अल्फाज़ हैं |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है
जवाब देंहटाएंमन पर पड़े घने धुंआ को हटाने पर ही आत्मा तक उसकी सुरभि आती है ..बहुत सुन्दर बात इतने सुन्दर ढंग से कह दिया आपने अनीता जी , कैसे मैं आभार व्यक्त करूँ..?
जवाब देंहटाएंaap kirachnaye kisi aur hi lok me pahucha deti hai....shukriya....achi rachna ke liye bdhai...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंjis din ye man ka ghana kohra chat jaayega...sansaar swarg ho jaayega...bahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंगूंजती हैं जब वेद ऋचाएँ कहीं
जवाब देंहटाएंया हवा के कंधों पर उड़कर
आती हैं अजान की आवाजें..
ले आती हैं सुगन्धि उसकी...
aur sab taraf sugandh hi sugandh....
आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंवाह! अद्भुत रचना....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
Behad sundar bhaav.. shuddh pavitr..aur umda... adbhut rachna.. badhai
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