ये नजरें कहीं और टिकती नहीं
तू नूर है हम नूर को चाहने वाले
अब अंधेरों से अपनी तो निभती नहीं
कहाँ छिपा सका तू खुद को पर्दे में
तुझसे तेरी खुदाई यह छिपती नहीं
बन के आँसू तू ही तो नहीं छलका
ऐसी ठंडक तो पहले मिली ही नहीं
माँ के हाथों सा छूके यह झोंका गया
तेरी धुन जैसी लोरी सुनी न कहीं
तेरी चाहत का ऐसा सरूर छा गया
इन कदमों की थिरकन थमती नहीं
तेरे दर पे जो आया वहीं रह गया
ये नजरें कहीं और टिकती नहीं
तेरी चाहत का ऐसा सरूर छा गया
जवाब देंहटाएंइन कदमों की थिरकन थमती नहीं ... bahut hi sundar bhaw
बहुत सुन्दर अनीता जी...
जवाब देंहटाएंबन के आँसू तू ही तो नहीं छलका
ऐसी ठंडक तो पहले मिली ही नहीं
बहुत खूब..
सादर.
सुभानाल्लाह........हर शेर मुकम्मल.दाद कबूल करे|
जवाब देंहटाएंमाँ के हाथों सा छूके यह झोंका गया
जवाब देंहटाएंतेरी धुन जैसी लोरी सुनी न कहीं
....वाह! हरेक शेर लाज़वाब...अप्रतिम भाव...आभार
कहाँ छिपा सका तू खुद को पर्दे में
जवाब देंहटाएंतुझसे तेरी खुदाई यह छिपती नहीं
हर रंग में तू ...
हर रूप में तू ...सुरूर छा जाये प्रभु का तो हर जगह ही प्रभु हैं ....!!
गहन में ले जाती हुई सुन्दर रचना..सत्य वचन..
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