हर पल में इक द्वार खुल रहा
भूल गया जग गहन नींद में
फिर भी खुद का भान हो रहा,
शब्दों ने घेरा स्वप्नों में
मनस वहाँ ब्रह्मांड हो रहा !
कभी डराते, चेताते भी
दु;स्वप्न जगाते भ्रम जाल से,
किन्तु जागकर अक्सर ही मन
डूबा रहे खामख्याल में !
हर पल में इक द्वार खुल रहा
उस अनंत की झलक दिखाए,
किन्तु सांत का छोटा सा कण
नजरों से ओझल कर जाये !
इक दिन सब कुछ अच्छा होगा
उस दिन की आस ही व्यर्थ है,
नए-नए हम बीज बो रहे
क्या जीवन का यही अर्थ है !
एक बार यदि रुककर कोई
क्षण में सहज प्रवेश करेगा,
कालातीत असीम सत्य का
निश्चय ही सन्देश सुनेगा !
बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंआस तो हर चीज़ की अच्छी नहीं पर ... बदलाव के दौर में बदलता ज़रूर है चाहे अच्छा या बुरा ... भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंआस सदा ही कल पर टिकी होती है पर जागना हमें आज ही है, कल की आस हमें आज में सुलाए रखती है
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर लयबद्ध छन्द रचे हैं आपने।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयदि आस ना रहे, परिवर्तन की चाह ना रहे तब तो शायद सब ख़त्म ही हो जाएगा
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