ज्योतिर्मय वह स्रोत ज्योति का
रवि सौर मंडल की आत्मा
आदित्य से हर रूप सजता,
सर्वप्रेरक, विश्व प्रकाशक
सप्तवर्णी, नेत्र शंकर का !
सूर्य देव हैं स्रोत अग्नि के
जीवन दाता वसुंधरा के,
द्युलोक में गमनशील हैं
नयनों में बसते प्राणी के !
अंधकार की काली छाया
छँट जाती सविता प्रकाश में,
पल भर में जो दृश्य बदल दे
दिवसेश्वर नित आकाश के !
अग्नि देह को जीवित रखती
वसुधा को भी गतिमय रखती,
बड़वानल सागर में रहकर
वैश्वानर जीव में बसती !
महाभूत है महादेव का
ज्योतिर्मय वह स्रोत ज्योति का,
तपस से ऋषिगण सृष्टि करते
प्रलय तीव्र ज्वाल से घटता !
अग्नि शिखा नित ऊपर बढ़ती
मार्ग प्रशस्त करे मानव का,
पावक परम पावन शक्ति है
नष्ट करे हर दोष सभी का !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
हटाएं